बिना अधिकारों का होगा महापौर पद,परिषद की दया पर निर्भर रहे

बिना अधिकारों का होगा महापौर पद,परिषद की दया पर निर्भर रहेगा
मध्यप्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश नगर पालिक निगम अधिनियम और मध्यप्रदेश नगरपालिका अधिनियम में जो हाल ही में निर्वाचन के संबंध में नियम और विनियम में जो संशोधन किए गए हैं ।निस्संदेह ऐसे संशोधनों का कोई न तो वैधानिक उचित है और ना ही लोकतंत्र की दृष्टि से इस प्रकार का संशोधन सर्वथा उचित नहीं माना जा सकता है इसके मूल कारण राजनीतिक और सामाजिक जो भी रहे हो लेकिन प्रमुख रूप से यह बात सामने उभरकर आती है कि लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुना गया प्रतिनिधि जो अभी पूरा नगर पालिक निगम अधिनियम उठाकर देखें तो आज की स्थिति में महापौर एवं महापौर परिषद यह दो शक्ति के केंद्र है और सर्वाधिक अधिकार महापौर परिषद और महापौर को प्राप्त है । महापौर को मौजूदा एक्ट में इतना शक्तिशाली बनाया है कि महापौर परिषद का मुख्य मंत्री जिस तरह से कैबिनेट का गठन करते हैं महापौर को अपनी महापौर परिषद का गठन करने का अधिकार है और सिर्फ अधिकारी नहीं किसी भी समय महापौर की इच्छा पर निर्भर है किसी भी महापौर परिषद के सदस्य को बिना कारण बताए किसी भी समय महापौर परिषद से बाहर का रास्ता दिखा सकता है। जब महापौर इतनी शक्तिशाली होगा तो उस परिस्थिति में सारा का सारा नियंत्रण नगर पालिकाओं में महापौर परिषद और महापौर का होता है ।और इसका दबाव जो हमारी सरकारी मशीनरी है आयुक्त और इन लोगों पर पड़ता है और सरकारी मशीनरी पर लगाम कसने में जनप्रतिनिधि आज की स्थिति में सक्षम साबित हो रहा है।
   जबकि वर्तमान में किए गए संशोधन में महापौर के पद को पूरी तरह से कमजोर और जिसको यह भी कह सकते  है कि इस संशोधन के बाद 10 परसेंट भी शक्तिशाली नहीं रहेगा ।महापौर का पद पूरी तरीके से जो महापौर परिषद है उसकी दया पर निर्भर होगा पार्षदों की संख्या अविश्वास प्रस्ताव इनके अधीन होगा और जहां तक महापौर परिषद के गठन का प्रश्न है तो महापौर परिषद का गठन आज की स्थिति में महापौर के विवेक पर निर्भर है ।
    नए संशोधन के बाद महापौर के महापौर परिषद का निर्वाचन भी संभव बना दिया गया है तो ऐसी परिस्थिति में जो सरकारी मशीनरी है खासतौर पर नगरपालिका अधिनियम में यदि सबसे शक्तिशाली है तो वह केवल और केवल आयुक्त में सर्वाधिक अधिकार का केंद्र है यदि कोई किसी का देश को नहीं मानना चाहिए या महापौर परिषद या बोर्ड के किसी को नहीं माना चाहे तो उसे कानून में ऐसा कोई बहुत सीधा और ठोस प्रावधान नहीं रखा गया है। जिससे उसे ऐसा प्रस्ताव मानने के लिए बाध्य किया जा सके और तो और कमिश्नर को वर्तमान नियम की धारा 3 के तहत महापौर परिषद और बोर्ड के द्वारा किए गए किसी भी निर्णय को वापस लौटाने का अधिकार भी दिया गया है कुल मिलाकर नौकरशाही और जो भी है इसमें आगे जाकर इस संशोधन में भारी होगी।
     जहां तक बिना दलीय आधार पर चुनाव यह वाकई में बहुत बड़ा मजाक है बिना दलीय  आधार के चुनाव का क्या मतलब है दुनिया जानती है कि राजनीतिक दल नगर पंचायत और नगर निगम में सीधे भागीदार होते है ओर निर्वाचन में भाग लेते हैं तो फिर उनके प्रत्याशियों को उतारने का निर्णय परोक्ष रूप से समझ से बाहर है  । जहां तक इस कानून का प्रश्न है इस पर पुनर्विचार बहुत आवश्यक है या इसमें बहुत सारे संशोधन की गुंजाइश है कुल मिलाकर होना यह चाहिए कि जनता के द्वारा चुने गए लोग औरनरेंद्र मोदी जी में सारे पावर केंद्रित है इसलिए भारत की राजनीति में अच्छे निर्णय हो रहे हैं और सारी दुनिया के सामने एक मिसाल है हम नए संशोधन के माध्यम से नगरीय निकाय संस्थाओं के सबसे सर्वोच्च पद महापौर को कमजोर कर रहे हैं इस नए संशोधन में यह बात तर्कसंगत नहीं है।