कांग्रेस के युवराज का संन्यास या पलायन

कांग्रेस के युवराज का संन्यास या पलायन
लोकतंत्र में जय और पराजय एक सिक्के के दो पहलू की तरह होते हैं और निस्संदेह एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए इस तरह की व्यवस्था आवश्यक भी है। कांग्रेस कि पिछले लोकसभा चुनाव में जिस तरह से हार हुई है इस हार के पीछे कारण जो भी रहे हो इस हार के पीछे देश में धर्म की आड़ में राजनीति खेलने का जो भी इस दुष्चक्र चला हो इसके कई विभिन्न आयाम कई पहलू हर प्रांतों में अलग-अलग रहे हैं ।
   हम मानते हैं कि राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बने तो उनके सशक्त नेतृत्व में युवाओं में उत्साह आया था और तीन चार प्रदेशों में कांग्रेस ने बहुत अच्छा प्रदर्शन भी किया ।लेकिन उसके ठीक बाद लोकसभा की इतनी शर्मनाक पराजय निसंदेह इस पराजय में राहुल गांधी अकेले का दोष नहीं है ।इस पराजय में किसी व्यक्ति विशेष को दोष देना भी ठीक नहीं है ।लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी ने मैदान छोड़ा है वह अत्यंत शर्मनाक हे।राहुल गांधी जैसे एक राष्ट्रभक्त परिवार के सदस्य को इस तरह से पार्टी से अपने आपको अलग कर लेना ओर इस्तीफा देने की बजाय सीधे शब्दों में यह कहा जाए कि उन्होंने पराजय को स्वीकार करने का जो शब्द है इसकी आड़ में अपने दायित्व कर्तव्यों से पलायन किया है। ऐसे बड़े नेता वर्षों की मेहनत के बाद तैयार होते हैं और जब तैयार होते हैं और एन समय पर अपने दायित्व और कर्तव्य से भटक जाते हैं तो इसे पलायन और पलायन से भी ज्यादा तीखा हो तो उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
     राजनीति किसी घर की अमानत या बपौती नहीं होती राजनीति किसी घर की प्रॉपर्टी नहीं होती। हिंदुस्तान की कांग्रेस ने बरसों के बाद एक युवा नेता तैयार किया और वह युवा नेता अपने दायित्वों को छोड़ दें तो निसंदेह यह पार्टी की बहुत बड़ी हानि होती है। राहुल गांधी के कारण यदि वह मानते हैं कि उनके कारण हार गए तो इस पराजय के घाव को भरने का दायित्व भी राहुल गांधी के ऊपर था। यदि वो मैदान में खड़े रहते तो देश की जनता उनका स्वागत करती तो विपक्ष में बोलने वाला कोई एक सशक्त व्यक्ति एक अखिल भारतीय स्तर की पार्टी तो है। लेकिन घने अंधकार में सबको पीछे छोड़ कर एक तरह से राहुल गांधी ने जो विलुप्त होने का कार्य किया है। निसंदेह यह राजनीति में पलायन की श्रेणी में आता है।