कमलनाथ सरकार विधान परिषद की गठन की कवायद, असंतुष्टों को साधेंने की होगी कोशिश ,29 को बैठक

कमलनाथ सरकार विधान परिषद की गठन की कवायद, असंतुष्टों को साधेंने की होगी कोशिश ,29 को बैठक
     भोपाल। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार अब अपना एक ओर महत्वपूर्ण वचन निभाने की तैयारी कर रही है ।विधान परिषद के गठन के साथ ही पार्टी में पनप रही  गुटबाजी एवं उन असंतुष्ट नेताओं को विधान परिषद में जगह देकर अपनी  सरकार को सुरक्षित करने के लिए कवायद शुरू कर आगामी 29 अक्टूबर को खाका तैयार करने के लिए सरकार ने एक बैठक आहूत की है जिसमें उसका पूरी रूपरेखा तैयार होगी।
      मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र को वचन पत्र का नाम दिया गया था ।जिसने काफी सुर्खियां बटोरी थी।इस वचन पत्र में विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव क्या गया था। मध्य प्रदेश के अलावा देश के 7 राज्यों में विधान परिषद का गठन किया जा चुका है। मध्यप्रदेश में विधान परिषद गठन को पिछले काफी समय से अटकलें लग रही थी।झाबुआ उपचुनाव जितने के बाद कमलनाथ सरकार एक अलग ही तेवर में नजर आ रही है।अब तक उस पर लगड़ी सरकार का जो आरोप लगता था वह उपचुनाव जीतने के साथ ही वह मजबूत सरकार में तब्दील हो चुका है।इसके बाद अब फिर से विधान परिषद के गठन की   सुगबुगाहट फिर से तेज हो गई है। देश के आधा दर्जन राज्य,3 केंद्र शासित प्रदेश में पहले से विधान परिषद अस्तित्व में हैं। तीन अन्य राज्यों को इनके गठन की मंजूरी मिल चुकी है।
सूत्रों के मुताबिक विधान परिषद गठन को लेकर संसदीय कार्य विभाग ने कवायद शुरु कर दी है। इसका खाका तैयार कर राज्य सरकार को सौंपा जाएगा।
      आप इसी परिपेक्ष में मुख्य सचिव सुधि रंजन मोहंती ने दो दिन बाद 29 अक्टूबर को एक उच्च स्तरीय बैठक भी बुलाई है। इसमें विधान परिषद की संभावना, उपयोगिता एवं इसके अमल में आने पर प्रस्तावित सालाना व्यय को लेकर चर्चा होगी।  ऐसा हुआ तो मध्य प्रदेश देश का 8वां राज्य बन जाएगा जहां विधानसभा परिषद का गठन हो चुका होगा। इस संबंध में राज्य के जनसंपर्क मंत्री पी.सी.शर्मा ने मीडिया से चर्चा में कहा कि विधानसभा परिषद में कोई ज्यादा खर्च नहीं आना है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इसे अपने वचन पत्र में जो वादा किया था उस पर अमल करेंगी। 
 विधान परिषद का गठन होने के साथ ही असंतुष्टों को साधने की कवायद भी शुरू हो जाएंगी। सूत्रों के मुताबिक, 15 साल बाद सत्ता में वापस आई कांग्रेस में अनेक नेता संवैधानिक व महत्व के पद पाने का आतुर हैं। वहीं कई विधायक तो मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए मुख्यमंत्री पर अपने तीखे तेवरों के जरिए आए दिन दबाव भी बनाते रहे हैं। कमल नाथ सरकार के बीते दस माह में ही ऐसे अनेक मौके आए जब मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं सरगर्म हुईं, लेकिन इनका नतीजा सिफर रहा। दरअसल, मंत्रिमंडल विस्तार की अपनी एक सीमा है। इसके जरिए सभी असंतुष्टों को नहीं साधा जा सकता। वहीं सरकारी खजाने की खस्ता माली हालत सरकार को निगम-मंडलों में नियुक्ति की इजाजत नहीं दे रही है। यही वजह है,कि सहकारी संस्थाओं में इक्का-दुक्का पदों को छोड़ मुख्यमंत्री ने अब तक कोई राजनैतिक नियुक्ति नहीं की। सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री इन नियुक्तियों के जरिए प्रदेश पर और अधिक आर्थिक बोझ बढ़ाने के पक्ष में भी नहीं है। ऐसे में विधान परिषद के प्रस्तावित गठन को पार्टी के असंतुष्टों को साधने की कवायद माना जा रहा है। वहीं सरकार इस परिषद के जरिए कला, संस्कृति, विज्ञान व शिक्षा जगत के मनीषियों को भी इसमें जगह देकर उन्हें नवाजने का काम कर सकती है।
 संविधान के  अनुच्छेद 169,171(1) व 172(2) में संसद से प्रस्ताव पारित होने व राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद राज्य विधान परिषद का गठन कर सकते हैं। इसी नियम के तहत वर्तमान में तेलंगाना, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व उप्र में विधान परिषद गठित हैं। राजस्थान, असम व उड़ीसा को भी इन परिषदों के गठन की मंजूरी मिल चुकी है। वहीं कें द्र शासित तीन राज्यों में जम्मू-कश्मीर को छोड़ यह परिषदें अस्तित्व में हैं।
कौन हो सकता है सदस्य परिषद में गैर विधायक सदस्य बनने के पात्र हैं। इनकी आयु तीस वर्ष से कम न हो। राज्य विधानसभा में कुल विधायकों की संख्या के एक तिहाई सदस्य ही इस परिषद में हो सकते हैं।  दो साल के अंतराल में एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल पूरा होता है। शेष की सदस्यता छह साल के लिए होती है। परिषद को भंग नहीं किया जा सकता। इसमें राजनीति के अलावा गैर राजनैतिक व्यक्तियों को भी सदस्य बनाया  जा सकता है।