विदेशो में धूम मचा रहे हैं भैरवगढ़ में बने बटिक प्रिंट

विदेशो में धूम मचा रहे हैं भैरवगढ़ में बने बटिक प्रिंट
विदेशों में बढ़ रही है उज्जैन की भैरवगढ़ प्रिंट कला की मांग
उज्जैन। शहर के कोतवाल कालभैरव के क्षेत्र भैरवगढ़ में कई छीपा कलाकार रोज कड़ी मेहनत कर अपनी कल्पनाओं को कई रंगों और आकर्षक डिजाईन कपड़ों पर उकेरते हैं। ऐसे ही एक छीपा कलाकार हैं 31 वर्षीय मोहम्मद वसीम मुंशी पिता युनूस मुंशी। हस्तशिल्प विकास निगम के सहायक संचालक श्री अखिलेश उपाध्याय द्वारा जानकारी दी गई कि कुछ महीने पूर्व विकास निगम द्वारा वसीम मुंशी को अपनी कला और व्यापार के विस्तारीकरण के लिये दो लाख रुपये की लागत का सौर ऊर्जा से चलित वाटर हीटर प्लांट लगाया गया है। साथ ही चार लाख रुपये की लागत से टीनशेड का निर्माण उनके कारखाने में अलग से किया गया है। 
वसीम बताते हैं कि पहले सीमित संसाधनों और तकनीक की कमी के कारण वे अपने कारखाने में बड़े पैमाने पर कार्य नहीं कर पाते थे। बिजली से चलने वाले हीटर के कारण बिजली का बिल भी अत्यधिक आता था और कई बार पूंजी की कमी के कारण वे कई बड़े ऑर्डर नहीं ले पाते थे, लेकिन इको फ्रेंडली सोलर वाटर हीटर और एक नया शेड बन जाने से अब उनके कारखाने में बड़े पैमाने पर भैरवगढ़ प्रिंट और बटिक प्रिंट के बेडशीट, साड़ियां, स्टॉल, दुपट्टे, कैरीबैग, टॉप, कुशन कवर और पर्दे बनने लगे हैं।
इन उत्पादों की जापान सहित कई देशों में अच्छी-खासी मांग बढ़ रही है। वसीम बताते हैं कि उनके पूर्वज राजस्थान के नागौर के रहने वाले थे। कई वर्षों पहले वे उज्जैन के समीप भैरवगढ़ में आकर बस गये थे। छपाई का काम करने के कारण इनके समुदाय को 'छीपा' समुदाय के नाम से जाना जाता है। तकरीबन 150 साल पहले वसीम के पूर्वज छपाई के कार्य में वेजिटेबल डाई का प्रयोग करते थे।
इस बात से कई लोगों को आश्चर्य होता है कि आज के अत्याधुनिक समय में भी भैरवगढ़ के विश्व प्रसिद्ध प्रिंट्स में छपाई और डिजाईन बनाने का कार्य पूरी तरह हाथ से किया जाता है। इसमें किसी भी तरह की मशीनरी का उपयोग नहीं होता है, लेकिन यही एक बात भैरवगढ़ प्रिंट्स को बाकीयों से अलग बनाती है। यहां तक कि रंगाई करने के लिये उपयोग में आने वाले पेन भी विशेष तौर पर सायकल की ताड़ी और ब्रश घोड़े के बाल से बनाये जाते हैं।
वसीम बताते हैं कि राजा-महाराजाओं के समय से उनके पूर्वज भैरवगढ़ में छपाई का कार्य कर रहे हैं। बिना किसी मशीन की सहायता के इस काम में कड़ी मेहनत और धैर्य की जरूरत होती है, लेकिन इस कला के कद्रदानों की भी कोई कमी नहीं है। वसीम के पांच भाई हैं। वसीम ने फॉरेन ट्रेड के अन्तर्गत इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट की पढ़ाई करने के बाद कई आकर्षक वेतन वाली नौकरियों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अपने अर्जित ज्ञान को उपयोग में लेते हुए अपने पुश्तैनी व्यवसाय को नई ऊंचाई देने में जुटे हैं वसीम। उन्होंने बताया कि कई जान-मानी प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्रियों, फैशन डिजाईनर और कपड़ों के बड़े ब्राण्ड्स के लिये वे समय-समय पर काम करते हैं। जानी-मानी हस्तियों के बीच भैरवगढ़ प्रिंट्स बहुत मशहूर है।
भैरवगढ़ प्रिंट्स कला के प्रदर्शन के लिये वसीम और उनकी टीम समय-समय पर देश-विदेश का दौरा करती है। मध्य प्रदेश शासन के हस्तशिल्प विकास निगम के द्वारा सन 2010 में उन्हें इंडोनेशिया भेजा गया था। इस कला की बारिकियां सीखने और देखने के लिये कई विदेशी कलाप्रेमी और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन टेक्नालॉजी (एनआईएफटी) के विद्यार्थी उनके कारखाने में आते हैं। वसीम को बटिक प्रिंट कला में वर्ष 2016-17 का राज्य स्तरीय हस्तशिल्प पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। इस वर्ष के हस्त शिल्प पुरस्कार के लिये भी उन्हें नॉमिनेट किया गया है।
वसीम बताते हैं कि भैरवगढ़ प्रिंट कला की देश-विदेश में प्रसिद्धि फैलाने में हस्तशिल्प विकास निगम का उन्हें बहुत सहयोग किया गया है, जिससे इज्जत, शोहरत और दौलत तीनों ही उन्हें मिली है, जिसके लिये वे तहेदिल से मध्य प्रदेश शासन और हस्तशिल्प विकास निगम का शुक्रिया अदा करते हैं। उनके व्यवसाय का सालाना टर्न ओवर तकरीबन दो से तीन करोड़ रुपये का है। वे इस कला को और बड़े स्तर पर फैलाना चाहते हैं ताकि उज्जैन सहित पूरे प्रदेश का देश-विदेश में नाम हो। इसी क्रम में उनकी टीम द्वारा समय-समय पर भैरवगढ़ प्रिंट और बटिक प्रिंट की प्रदर्शनी भी देश-विदेश में लगाई जाती है। वहां आने-जाने का पूरा व्यय हस्तशिल्प विकास निगम द्वारा वहन किया जाता है। कुछ साल पहले इंग्लैण्ड में हुए शाही घराने के विवाह समारोह में भी उनकी टीम द्वारा भैरवगढ़ प्रिंट्स की प्रदर्शनी लगाई गई थी।
वसीम बताते हैं कि वर्तमान में उनके पास छपाई के उपयोग में आने वाले सौ साल से भी अधिक पुराने ब्लॉक्स मौजूद हैं, जिनमें उस समय की कई आकर्षक डिजाईनें हैं। छपाई का कार्य केवल शुद्ध सूती और शुद्ध रेशम तथा कोसा रेशम के कपड़ों पर ही किया जाता है। किसी भी तरह के सिंथेटिक कपड़े पर भैरवगढ़ प्रिंट्स का कार्य संभव नहीं है। छपाई के लिये प्रयोग में आने वाली उत्तम गुणवत्ता की डाई भी बाहर से मंगाई जाती है। परम्परागत डिजाईन के अलावा कई नई तरह की प्रासंगिक फ्रीहैण्ड डिजाईन भी वसीम और उनके कारीगरों द्वारा बनाई जाती है।
छपाई के पहले कपड़े को आठ दिनों तक पानी में गलाया जाता है। इसके बाद कपड़े की ब्लिचिंग की जाती है। फिर दो दिनों तक इसे दोबारा पानी में रखा जाता है। जरूरत के हिसाब से कपड़े की कटिंग की जाती है। बटिक छपाई के लिये कारखाने में एक तरफ गैस पर मोम गर्म होता रहता है और एक तरफ मेज पर सफेद कपड़ा फैला रहता है। पिघले हुए मोम में कलम डुबोकर कारीगर फ्रीहैण्ड चित्र बनाते हैं। इसके बाद 120 डिग्री सेल्सियस पर गर्म पानी में कपड़ों को मोम निकालने के लिये भिगोया जाता है। फिर रंगों में डुबोकर इन्हें डाई किया जाता है। बटिक छपाई में अधिकतम सात रंगों का प्रयोग एक ही कपड़े पर किया जा सकता है।
और इस तरह तैयार हो जाते हैं भैरवगढ़ और बटिक प्रिंट के रंग-बिरंगे और आकर्षक बेडशीट, सोफा कवर, साड़ियां, कुशन कवर और पर्दे। अपनी कला को और समृद्ध करने के लिये वसीम आधुनिक तरीकों का भी उपयोग कर रहे हैं। परिवार की अगली पीढ़ी को भी समय-समय पर इस कला से अवगत कराते रहते हैं। वसीम सोशल नेटवर्किंग साइट्स और स्वयं की वेब साइट के माध्यम से भैरवगढ़ प्रिंट कला का प्रचार-प्रसार करते हैं। इसी में आगे वे पीएचडी भी करना चाहते हैं ताकि इस कला में रूचि रखने वाली नई पीढ़ी को शिक्षित कर सकें।
वसीम के कारखाने में लगभग 22 कारीगर हैं और छपाई के लिये एक से तीन हजार ब्लॉक इनके पास उपलब्ध हैं। एक ब्लॉक की कीमत 300 रुपये से लेकर 4000 रुपये तक होती है। ब्लॉक लकड़ी और तांबे दोनों के बने होते हैं। छपाई के लिये प्रयोग में आने वाले रंग पूरी तरह से पर्यावरण हितैषी होते हैं। वसीम ने अपने कारखाने के प्रांगण में टेसू, अनार और पलाश के पेड़ लगाये हैं, जिनसे प्राकृतिक तरीके से रंग बनाये जाते हैं। जिस प्रकार से भैरवगढ़ प्रिंट को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने में लगे हैं वसीम, वह काबिले तारीफ है। साथ ही अपने पुश्तैनी व्यापार को बनाये रखकर उसे आधुनिकता से जोड़ने और विस्तारित करने की वसीम की कला अन्य कई छापा कलाकारों के लिये निश्चित तौर पर प्रेरणा बन रही है।