कालिदास समारोह शुरू होने में महज दो दिन ,अभी तक अतिथि तय  नहीं,समारोह राजनीति की भेंट चढ़ा!

कालिदास समारोह शुरू होने में महज दो दिन ,अभी तक अतिथि तय  नहीं,समारोह राजनीति की भेंट चढ़ा!
उज्जैन। मप्र की धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी उज्जैन में महाकवि कालिदास के नाम से प्रतिवर्ष अभा कालिदास समारोह का आयोजन हो रहा है।बीते वर्षों में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण यह समारोह महज ओपचारिक बन कर रह गया है अब न तो इसमें विद्वानों की राय ली जाती है और नहीं आयोजन को उच्च स्तर पर ले जाने के कोई प्रयास किए जा रहे है । इसका नतीजा यह हुआ कि इस राष्ट्रीय समारोह से जनता पूरी तरह कट गई और यह विश्व विख्यात कवि के नाम से जाने जाना वाला समारोह राजनीति की भेंट चढ़ गया।यहां तक इस समारोह के शुभारम्भ के लिए अभी तक कोई अतिथि का नाम तक सामने नहीं आया है।जबकि समारोह में अब केवल दो दिन ही बाकी है।
    हजारों साल से उज्जैन सांस्कृतिक परंपराओं का और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है और यही कारण है कि उज्जैन में अखिल भारतीय कालिदास समारोह की स्थापना उस समय के विद्वानों ,संस्कृत विद्वानों ने और देश और विदेश के प्रकांड साहित्यकारों ने एक विशेष योजना तैयार कर कालिदास समारोह की स्थापना की थी।लेकिन दिनों दिन आप और हम यह देख रहे हैं कि कालिदास समारोह अपने मूल प्रासंगिकता खोता जा रहा है। जहां एक और कालिदास जैसे महान कवि विश्व विख्यात कवि जिसके नाम से अवंतिका का हजारों साल का इतिहास जाना जाता है उसके नाम पर स्थापित एक विराट एक विशाल और एक गरिमामय समारोह स्थानीय राजनीति की भीड़ में कहीं न कहीं निरंतर खोता चला जा रहा है
     आप चाहे समितियों का स्तर देखें चाहे आप आयोजन समिति की तैयारियां देखें या आप सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कलाकारों का चयन देखें चारों तरफ राजनीतिक खींचतान इस कार्यक्रम की गरिमा को कहीं न कहीं कम कर रही है और खंडित कर रही है । यही कारण है पिछले कई वर्षों से लाखों रुपए खर्च करने के बाद उज्जैन के कालिदास अकादमी परिसर जहां पर वर्ष भर 365 दिन किसी न किसी संस्था का कार्यक्रम होता है उन कार्यक्रमों में अपार भीड़ होती है फिर क्या कारण है कि कालिदास समारोह में भीड़ क्यों नहीं जुट पाती है। इस समारोह में कभी-कभी तो 40 कलाकार मंच पर प्रस्तुति देते हैं और 39 श्रोता बाहर ऑडियंस में बैठे रहते हैं ।इस पर हमें  चिंतन करना होगा।
     इस कालिदास समारोह में आई इस गिरावट को दूर करने के लिए कुछ अधिकारियों ने हस्तशिल्प मेले की परिकल्पना को आयाम दिया परिणाम अच्छा हुआ सफल हुआ। लेकिन उससे कालिदास समारोह को कोई लाभ हुआ और ना ही कालिदास समारोह के लिए उच्च स्तर के अच्छे श्रोता आयोजक जुटा पाए कुल मिलाकर देखा जाए तो अतिथियों का नहीं होना राजनीतिक विद्वेष की पराकाष्ठा मीटिंग में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी और कलाकारों के चयन का भाव भीड़ प्रबंधन का पूरी तरह भाव कालिदास को जनता के बीच पहुंचाने का कोई काम ठोस काम वर्ष भर इतनी बड़ी अकादमी होने के बाद भी सुधारों के द्वारा नहीं किया जाता है।
      यही कारण है कि कालिदास समारोह में उद्घाटन और समापन के दिन जो भीड़ हमें दिखती है । वह प्रायोजित भीड़ होती है और कहीं न कहीं अपनी इज्जत और इस कार्यक्रम की गरिमा को बचाने के लिए लाई गई भीड़ होती है। अच्छा तो तब होता जब कालिदास समारोह को जन-जन से जोड़ा जाता यहां की लोक संस्कृति को जोड़ा जाता यहां  की भजन मंडलियों को जोड़ा जाता यहां के वैदिक विद्वानों को जोड़ा जाता और पूरी तरह से उज्जैन की जो वैदिक परंपरा है और कहीं न कहीं जितने लोगों का समागम कालिदास समारोह में समाहित होता तो निश्चित और किराए पर लाई गई भीड़ की तुलना में कालिदास समारोह का एक गरिमामय इतिहास बना रहता। हमें तत्परता से इस पर सोचना चाहिए और जनता से जुड़े कार्यक्रम हो और असली वक्ता और श्रोता के बीच जो दुनिया हुई उसे पुन स्थापित करने का प्रयास हो तभी इस समारोह की सार्थकता सिद्ध हो पाएगी।